Shri Hanuman baan | श्री बजरंग बाण का पाठ |

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बजरंग बाण: ऐसा माना जाता है कि श्री हनुमान जी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा कलियुग में तत्काल फल देती है। रुद्र के 11वें अवतार हनुमान जी की पूजा करने से लोगों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। हनुमान जी की पूजा में हनुमान चालीसा, हनुमान आरती, संकट मोचन हनुमान अष्टक और बजरंग बाण का विशेष महत्व है। बजरंग बाण के नियमित पाठ से भक्तों के सभी प्रकार के भय और संकट दूर हो सकते हैं। रिवील डॉट इन पर बनाएं बजरंग बाण।

बजरंग बाण के पाठ से आती है हनुमान जी की कृपा

वैदिक धर्म में ऐसा माना जाता है कि जो भक्त नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करते हैं। रुद्र के 11वें अवतार हनुमान जी की कृपा उन पर बनी रहती है। बोलते समय बजरंग बाण का पाठ हमेशा करना चाहिए। बजरंग बाण की महिमा अपार है। ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करते हैं, उनके लिए यह अचूक बाण का काम करता है। भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। दरअसल, बजरंग बाण के पाठ से भगवान हनुमान न केवल साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, बल्कि उनके जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से मुक्ति भी दिलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि साधक किसी कार्य को पूर्ण करना चाहता है तो बजरंग बाण का नित्य पाठ करने से कार्य अवश्य ही सिद्ध होता है।

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बजरंग बाण

दोहा

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।

जनके काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा।

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर मह भई।

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुख करहु निपाता।

जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले।

गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महारज प्रभु दास उबारो।

ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लावो।

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।

सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।

पूजा जप त​प नेम अचारा। नहिं जानत हौं दा तुम्हारा।

वन उपवन मग ​गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।

पांय परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।

जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।

बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रति पालक।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर।

इन्हें मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।

जनक सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ विलंब न लावो।

जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।

चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।

उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई।

ओम चं चं चं चं चपल चलंता। ओम हनु हनु हनु हनु हनुमंता।

ओम हं हं हांक देत कपि चंचल। ओम सं सं सहमि पराने खल दल।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होत आनंद हमारो।

यहि बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबारे।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की।

यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपै।

धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।

दोहा

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।

तेहि के कारज शकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. jankari center इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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